कुरआन के संदेश में बुद्धिमत्ता

1.1 ऐसा मालूम होता है कि बारिश के होने का समय एवं नवजात बच्चे का अपनी मां के पेट में लिंग क्या होगा उसके बारे में पहले से पता लगाया जा सकता है। क्या इन बातों को कुरआन में जिन पांच रहस्यों का वर्णन किया गया है उस सूची में शामिल करने की अब जरूरत नहीं है?

यह प्रश्न “समय” एवं “ज्ञान” के रहस्य से संबंध रखता है जो आयत में बताई गई पांच चीजों को संचालित करने का काम करता हैः

कयामत का इल्म केवल अल्लाह को है। यह वही है जो जमीन पर बारिश भेजता है और जो जानता है कि मां के पेट में क्या है। कोई नहीं जानता कि कल वह क्या कमाएगा और कोई नहीं जानता कि किस सरजमीन पर उसकी मौत होगी। अल्लाह को इल्म है इन सब बातों का, वही सब चीजों का जानने वाला है। (लुकमान 31:34)

आईए इन पांच चीजों पर क्रम से विचार करते हैं।

केवल अल्लाह जानता है कि कयामत कब कायम होगी। जैसा कि कुरआन बयान करता है कि यह वए वास्तविकता है और सिद्धांत है, इसलिए किसी मुसलमान के लिए यह उचित नहीं है कि उन चीजों के बारे में कोई विचार प्रस्तुत करे बिना यह कहे हुए कि (अल्लाह ही बेहतर जानने वाला है।” हम इस बात की सच्चाई की पुष्टि एक प्रसिद्ध हदीस के आधार पर भी करते हैं जिसमें यह बताया गया है कि एक बार फरिश्तों के सरदान हज़रत जिब्रील अ. तशरीफ लाए अल्लाह के नबी मुहम्मद स.अ.व. के पास और उनसे आग्रह किया कि वह कृपया कि ईमान, इस्लाम और एहसान का क्या मतलब है। हज़रत जिब्रील ने अल्लाह के नबी के बताने पर अपना सर हिलाकर यह कहते हुए पुष्टि की कि अपने सच फरमाया। हज़रत जिब्रील का अंतिम सवाल थाः “कयामत कब कायम होगी?” तो पैगम्बर ने जवाब दियाः “सवाल करने वाले से ज्यादा जिससे सवाल किया जा रहा है, नहीं जानता।” फिर उसके बाद उन्होंने कयामत आने के पहले घटित होने वाली कुछ निशानियों का जिक्र किया जो कयामत के आने से पहले प्रकट होंगी। अल्लाह के नबी का इस प्रकार का विनम्र व्यवहार था जब उनसे उन पांच चीजों के रहस्य के बारे में पूछा गया। पैगम्बर और जिब्रील दोनों को किसी हद तक उस चीज के बारे में ज्ञान था लेकिन उन्होंने यही जवाब देना मुनासिब समझा कि केवल अल्लाह को ही अंतिम तौर पर इसका इल्म है कि यह कब घटित होगी।

जहां तक इस प्रश्न की बात है कि कयामत किस प्रकार कायम होगी, यानि अपने सादृश्य रूप में, तो हम कई चीजों के बारे में अनुमान लगा सकते हैं और उनमें से कोई भी हो सकता है जो आपको संतुष्ट कर देः जैसे, एक धूमकेतू जमीन से टकराएगा या उसमें विस्फोट होगा या हो सकता है कि लोग कुछ हो और फिर उस पर उनका वश भी न रह जाए, इत्यादि लेकिन एक बार फिर वही बात आती है कि केवल अल्लाह को इल्म है कि यह कब होगा और कैसे होगा।

कुरआन की इस आयत में जिस दूसरे रहस्य का वर्णन किया गया है वह बारिश है जिस अल्लाह आसमान से जमीन पर बरसाता है। ये दो बिंदु हैं जिन्हें इस सवाल में उठाया गया है। लोग यह दवा कर सकते हैं कि कब बारिश होगी और ऐसा वह मौसम की विवेचना करके कर सकते हैं और फिर वह तर्क दे सकते हैं कि अब इस विषय पर बहस करने की जरूरत नहीं है कि बारिश का जमीन पर होना कोई रहस्यात्मक बात है। इसमें कोई शंका की बात नहीं है कि कुछ लोग ऐसी बातें करके दूसरों के मन में कुरआन की सत्यता एवं ईमान को लेकर भ्रम पैदा करना चाहते हैं। लेकिन मुसलमानों को चाहिए कि ऐसे प्रश्नों का सामना पूरी संवेदनशीलता से करें, भले ही ऐसे प्रश्न आपके सामने आएं जिसके पीछे ईश-निंदा की भावना छुपी हुई हो।

मैं इस प्रश्न से अपनी बात शुरू करता हूं कि कितने लोग हैं जो यह दावा कर सकते हैं कि वह अदृश्य अर्थात गैब को जानने वाले हैं भले ही आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक का संबंध वास्तव में अदृश्य चीजों के साथ है या जो उनकी हमारी समझ से परे है। वास्तव में, बारिश को लेकर जो उनका अनुमान होता है वह प्रत्यक्ष दुनिया में उन निशानियों और परिस्थितियों को देख कर होता है जो बारिश से पहले आमतौर पर देखने को मिलती है लेकिन उसका अदृश्य के ज्ञान से कोई लेना देना नहीं होता।

आईए इस बात को एक उदाहरण के जरिये आपको समझाते हैं। एक कमरे का वेंटेलेशन बंद कर दीजिए जबकि वह कमरा पूरी तरह लोगों से भरा हो और फिर कमरे में कुछ कार्बनडाइ ऑक्साइड डाल दीजिए, फिर कार्बनडाई ऑक्साइड और ऑक्सीजन के स्तर को मापिए। फिर इस बात की भविष्यवाणी कीजिए कि कितने मिनटों बाद कमरे में मौजूद लोगों को किसी प्रकार का सर दर्द महसूस होगा। अगर हमारी भविष्यवाणी सच साबित होती है तो फिर क्या होगा? क्या हम यह कहेंगे कि हमें गैब का इल्म है? नहीं। गैब के बारे में कुरआन स्पष्ट करता है कि ये वह बातें जिसका इल्म केवल अल्लाह को है। सारी तफसील जानते हुए कि बारिश कितनी और कब होगी यह भी जोड़ दीजिए कि आने वाले पांच और दस सालों में इसका स्वरूप क्या होगा तो क्या उसका यह अर्थ लगा लिया जाए कि आप गैब का जानने वाला बन गए हैं। क्या लोग इस बात की भविष्यवाणी कर सकते हैं कि आने वाले पांच और दस सालों में बारिश कितनी होगी? उसके साथ ही हमने अक्सर देखा है कि मौसम विभाग जो भी भविष्यवाणी करता है कई बा रवह सच साबित नहीं होती; कई बार तो ठीक उसके उल्टा होता है। यह इस बात को बताता है कि उन्हें इन बातों के बारे में अंतिम तौर पर कोई ज्ञान नहीं होता बल्कि परिकलित गणना के आधार पर ऐसी भविष्यवाणी करते हैं।

उसके अलावा बारिश होगी या नहीं इसको जानने के लिए बहुत सारे उपकरणों एवं चीजों की जरूरत नहीं है। बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो केवल अपने वर्षों के अनुभव के आधार पर यह बता सकते हैं कि बारिश कब और कितनी होगी और उनकी भविष्यवाणी किसी मौसम विज्ञानी से कम भी नहीं होगी। आईए, एक घटना का वर्णन करता हूं जिसका संबंध इस विषय से है।

कुछ अमेरिकी वैज्ञानिक एक गांव में कुछ शोध कार्य करने के लिए आए। उन लोगों ने देखा कि कुछ चरवाहे बड़ी तेजी के साथ बकरे बकरियों को चरागाह की ओर हांकने के बजाए, बाड़े की ओर हांक रहे हैं। वैज्ञानिकों को यह देखकर बेहद आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा कि ऐसा वह क्यों कर रहे हैं। उन चरवाहों ने बताया कि बारिश होने वाली है इसलिए वह ऐसा कर रहे हैं। उन वैज्ञानिकों ने अपने उपकरणों की मदद से मौसम की जांच की और पाया कि बारिश के तो कोई आसार ही नहीं है। लेकिन कुछ ही देर में बारिश शुरू हो गई। वैज्ञानिक भी अपने को छुपाने के लिए बाड़े के अंदर आ गए और चरवाहे से पूछा कि आपको यह कैसे मालूम हो गया था कि बारिश होने वाली है। उसने बतायाः “मैंने वर्षों के अवलोकन के बाद यह पाया कि बकरियां अपनी दुमों को अपने पैरों के बीच नीचे की ओर कर लेती हैं तो फिर बारिश आती है।”यह सुनकर उन वैज्ञानिकों को अपने उन आधुनिक उपकरणों को देख कर दया आई कि यह किसी काम के नही हैं। और यह बकरियों की दुम से ज्यादा महत्व नहीं रखते। उसी प्रकार बदीउज्जमां नुर्सी यह कहा करते थे कि वह अपने गठिया के रोग के बल पर अड़तालिस घंटे पहले जान जाते थे कि बारिश कब होने वाली है। कुछ गांववासी तो वातावरण में हो रहे बदलावों को देख कर बता दिया करते थे कि कब बारिश होगी और कब बर्फ पड़ेगी।

हाइग्रोमेट्री, हाईड्रोस्टैटिक्स, डाइनैमिक्स और मौसम विज्ञान एवं दूसरे विज्ञानों की रौशनी में, वातावरण में हो रहे बदलावों का अवलोकन करके, जैसे बादल, उनका घनत्व, नमी, हवा के दबाव में परिवर्तन, बहाव, हवा की स्थिति, तापमान संबंधी प्रणाली इत्यादि का सहारा लेकर, जिसमें अति आधुनिक उपकरणों की भी मदद ली जाती हैः जैसे रेडार, कंप्यूटर, सेटेलाइट, इत्यादि और उसके आधार पर मौसम की भविष्यवाणी की जाती है। लोग केवल संकेत लक्षण के आधार पर बताते हैं कि बारिश होगी या नहीं। कुछ लोग अपने इन अनुमानों पर आधारित ज्ञान को अदृश्य के ज्ञान के समक्ष ठहराते हैं, यानि वह बता सकते हैं कि कितनी मात्रा में बारिश होगी और किस समय होगी। ऐसा करके वह यह जताने की कोशिश करते हैं कि कुरआन की इस आयत को असत्य ठहरा दिया जाए। लेकिन उनका ऐसा करना या मानना केवल उनकी अज्ञानता एवं धृष्टता को ही जाहिर करता है।

मैं पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. की एक अद्भुत हदीस का वर्णन करूंगा जिसे आज वैज्ञानिक रूप से स्वीकार भी कर लिया गया है। उन्होंने फरमायाः “कोई भी साल पिछले साल के मुकाबले अधिक बारिश वाला साल नहीं होता।”2 इस हदीस से यह बात साबित होती है कि हर साल जमीन एक समान मात्रा में बारिश होती है। लेकिन हम इस बात से अनजान होते हैं कि वह बारिश कितनी मात्रा में, कब और कहां होगी। यह गैब की बातें हैं और उसे जाना नहीं जा सकता।

इस आयत में जिस तीसरी बात का वर्णन किया गया है वह दूसरा बिंदू है जिसे हम प्रश्न में उठाया गया है। यह अल्लाह है जिसे इस बात का इल्म है कि मां के पेट में क्या है। लेकिन कुछ लोग कह सकते हैं कि डाक्टरों को पता होता है कि मां के पेट में क्या है, लड़का या लड़की, अल्ट्रासाउंड या दूसरी मेडिकल प्रक्रियाओं के द्वारा। यह बेहतर होता अगर वह इस बात पर ध्यान देते कि दृश्यमान दुनिया में जो कुछ भी वह जानते हैं जिसकी निशानी और लक्षण उन पर जाहिर होने लगते हैं, उसका फिर भी गैब के इल्म से कुछ लेना देना नहीं होता।

लोग यह भी दावा करते हैं कि वह किसी अजन्मे बच्चे के लिंग के बारे में अनुमान लगा सकते हैं क्योंकि वे लिंग गुणसूत्र का पता लगा सकते हैं निषेचित होने वाले अंडाणु के अंदर कि वह एक्स एक्स या वाई वाई है। एक बार फिर, वीर्य में लिंग गुणसूत्र के बारे में बताने की योग्यता होने के बावजूद, चाहे उसका पता मां के पेट में लग जाए या बाहर, उसका गैब के इल्म से कुछ लेना देना नहीं है। एक रौशनी प्रदान करने वाली हदीस में अल्लाह के रसूल फरमाते हैं: “अगर पुरूष का वर्चस्व होता है तो लड़का पैदा होता है या/और अगर महिला का वर्चस्व होता है तो लड़की पैदा होती है।” (इस हदीस का महिला और पुरूष के संबंध में वर्चस्व से कुछ लेना देना नहीं है, जैसा कि अतीत में कुछ व्याख्याताओं ने इसका गलत अर्थ निकालने की कोशिश की है।) सच्चाई यह है कि अगर वीर्य जिसमें पुरूष के गुणसूत्र (एक्स वाई) पहले पहुंचते हैं, तो वह अंडाणु की झिल्ली को भेदने में सफल होते हैं और उसे निषेचित करते हैं, तो लड़का पैदा होता है, लेकिन अगर महिला गुणसूत्र पहले पहुंचता है और अपना वही काम करत है जैसा कि ऊपर बताया गया है तो फिर लड़की पैदा होती है। भविष्य की घटनाओं को लेकर कुछ ज्ञान और निर्धारक कारकों की जानकारी होने का मतलब यह कतई नहीं है कि वह भविष्य के बारे में पहले से जानते हैं; ऐसा दावा करना कोरा भ्रम ही कहा जा सकता है।

कुरआन कहता है कि यह अल्लाह ही है “जिसे ज्ञान है कि मां के मेट में क्या है” यह यहां शब्द मां का प्रयोग करता है। यह आयत यह नहीं कहती कि यह अल्लाह है जो जानता है कि मां के पेट में लड़का है या लड़की। “क्या” केवल अजन्मे बच्चे के लिंग की बात करती है बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि वह बच्चा पैदा होगा या नहीं और अगर ऐसा होगा तो फिर वह कितने दिनों तक मां के पेट में रहेगा या रहेगी, वह जिंदा पैदा होगा और उसकी प्राकृतिक रूप से वृत्ति एवं आचरण क्या होगा, वह नेक होगा वह नेक होगा या बुरा, वह एक व्यक्ति के रूप में क्या पहचान हासिल करेगा, एक अच्छा ईमान वाला होगा या शैतान के नक्शे कदम पर चलने वाला होगा, जीवन में क्या-क्या काम करेगा, अपने मां-बाप और समाज के लिए एक अनुग्रह साबित होगा या शाप और इस दुनिया और कयामत के दिन उसके वजूद को किस प्रकार से लेंगे। इसलिए वास्तव में जो गैब की बातें हैं उसे मां शब्द के माध्यम से समग्र रूप से समेटने की कोशिश की गई है। यहां मामला केवल लिंग के निर्धारण का नहीं है, कुरआन जिस बात की ओर इशारा करता है वह एक समग्र, व्यापक और वैश्विक ज्ञान की ओर करता है। केवल इस स्तर के ज्ञान को ही उचित रूप से गैब का जानने वाला ज्ञान कहा जा सकता है। यह दावा करना कि इंसान हर चीज को जान सकता है और कर सकता है यह कोरा भरम और नादानी के अलावा और कुछ नहीं है।

इस बिंदु को और स्पष्ट करने के लिए सरल उदाहरण पर विचार कीजिएः

किसी बागीचे की बाड़ के एक ओर खड़े होकर आप किसी सेब के पेड़ को देखते हैं। उसकी जड़ और उसका तना आपकी ओर है, लेकिन उसकी पत्तियां एवं शाखाएं दूसरी ओर झुकी हुई हैं, इसलिए आप उसे देखने में असमर्थ हैं। जब इसमें फल देने का समय आता है, तो आप कहते हैं कि दूसरी ओर की जो शाखाएं हैं वह अब फलों से लदी हुई हैं। लोग जब उसे देखते हैं तो वे भी वास्तव में वही पाते हैं। लेकिन क्या इसका यह अर्थ लगा लिया जाए कि आपको गैब का इल्म है? या फिर आप एक साधारण घटना के बारे में बता रहे हैं जिसे आमतौर पर हर कोई जान सकता है? निश्चित रूप से दूसरी बात अधिक तर्कसंगत है। ठीक यही बात उस बच्चे पर भी लागू होती है जो अभी अपनी मां के पेट में है। इसको जानना कोई गैब की जान लेना नहीं है, बल्कि केवल उस पेड़ के बारे में बताना है जिसकी जड़ें दृश्यमान दुनिया में हैं और जिसकी शाखाएं अदृश्य दुनिया की ओर झुकी हुई हैं। इस प्रकार के तुच्छ एवं गलत दावे के आधार पर आपको गैब का इल्म है। कुरआन की आयत को झुठलाना आपकी पूर्णतौर पर नादानी एवं बेवकूफी को ही दर्शाता है।

इस आयत में जो चौथा बिन्दु उठाया गया है वह यह कि “किसी को नहीं मालूम कि कल वह क्या कमाएगा।”यहां जिस कमाने की बात की गई है उसका तात्यपर्य केवल धन के रूप में आजीविका कमाना नहीं है, बल्कि आमतौर पर अपने अच्छे बुरे कर्मों का लाभ भी अर्जित करना है कि वह उससे क्या हासिल करेगा यानि गुनाह या सवाब। कोई नहीं जानता कि वह उसके साथ क्या पेश आने वाला है। इस कमाई के अधीन वह सारी चीजें आ जाती हैं जो इंसान प्रबोध एवं शांति के तौर पर कमाता है। अगर वैज्ञानिक इस ज्ञान और अनुभव में वृद्धि करते हैं तो इसे भी कमाई की श्रेणी में रखा जाएगा और केवल अल्लाह को इल्म है कि वह इसमें कितना इज़ाफा करेगा और कब करेगा। कभी-कभी आप कई खंडों में किसी पुस्तक को पढ़ लेते हैं लेकिन आपको उससे कुछ हासिल नहीं होता; और दूसरी ओर एक पंक्ति पढ़ कर भी आप इतना ज्ञान अर्जित कर सकते हैं कि उससे एक पूरी किताब पढ़ कर भी हासिल नहीं कर पाएंगे और उससे आपकी प्रेरणा में वृद्धि होता है।

लेकिन अगर इस संदर्भ को केवल आर्थिक अर्थ में लेते हैं, तो भी यह संभव नहीं है कि कितने सारे लोग निर्धारित राशि के हिसाब से कल को अपना पगार हासिल करेंगे क्योंकि कोई अप्रत्याशित उपहार, कोई अप्रत्याशित खर्च, कोई दुघर्टना या प्राकृतिक आपदा, हो सकता है कि आने वाले दिन आपकी कमाई के सारे खेल को बिगाड़ दे। मुझे नहीं लगता कि इस तर्क को और व्याख्यायित करने के लिए अधिक उदाहरणों की आवश्यकता है। आप कहिए जैसा कि कुरआन कहता है, “कोई नहीं जानता कि कल वह क्या कमाएगा।”

पांचवा बिंदु है “कोई नहीं जानता कि वह किस सरजमीन पर मरेगा।” केवल अल्लाह को मालूम है कि वहां मरेगा और कैसे उसकी मौत होगी। इज्राईल, जो मौत के फरिश्तों के सरदार हैं या उनके सहयोगी यह ऐलान करेंगे, “जिसका इल्म हमें नहीं है। कोई इस पर अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करता, इसलिए मैं इसे वहीं छोड़ता हूं।

जिन पांच रहस्यों की इस आयत में बात की गई है उनको अल्लाह अपने इल्म एवं कानून के मुताबिक ही अमल में लाता है। हम अपने साधारण जीवन में कुछ चीजों के बारे में जानते हैं लेकिन आप इसकी तुलना अल्लाह के इल्म से नहीं कर सकते। हमारा ज्ञान केवल चीजों की जानकारी प्राप्त करने के लिए ही है जो हमें गैब से अता किया गया है और जो इस दुनिया में जाहिर होता है। हम बिल्कुल निश्चिततौर पर किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते कि यह कब होगा, और कहां घटित होगा। यह खासतौर पर बारिश के मामले में भी। यह रहस्य हमेशा बना रहेगा और इसका अंतिम इल्म केवल अल्लाह ही के पास है।

निश्चित रूप से यह केवल अल्लाह ही है जो हर चीज को जानने वाला और उससे पूर्ण वाक़फियत रखने वाला है।

1.2 क्या जो लोग किसी प्राकृतिक आपदा में मारे जाते हैं उनकी मौत का नियत समय एक साथ ही आता है?

........... और वह जानता है जो कुछ जमीन के ऊपर है और जो कुछ समुद्र में है; और कोई पत्ता नहीं गिरता जिसके बारे में वह जानता नहीं है; और न ही कोई दाना जो जमीन के अंधेरे में नीचे जाता है, न तो कोई जिंदा चीज या मुर्दा, लेकिन वह सब कुछ एक साफ किताब में दर्ज हैं। (अनआम 6:59)

मौत को भौतिक के अंत एवं अंतिम परिणति के तौर पर देखा जाता है। अल्लाह की ओर से प्रत्येक जीव को उनकी अपनी परिस्थितियों एवं सीमाओं के अधीन जीने का अवसर प्रदान किया जाता है। मौत उसकी अंतिम परिणति है जो एक नियत समय पर आती है। हर चीज जिसका अस्तित्व है उसका एक आरंभ है, उसकी एक नियत की गई जिंदगी है और नियत की गई मौत भी है।

समय और अस्तित्व के प्रवाह में, आरंभ एवं अंत के बीच के अंतर को बताना एक असंभव कार्य है। इस श्रेणी में हर चीज आती है चाहे वह एक बूंद पानी की ही क्यों न हो, जो जमीन द्वारा सोखी जाती है, वह उसमें अंदर जाकर अदृश्य हो जाती है। यह हो सकता है कि वह पानी का चश्मा हो जो बह कर फिर समुद्र में जा मिलता है और जब उसके पानी में मिलता है तो पूर्णतः उसी में विलीन हो जाता है। यही हर चीज की किस्मत है। सारी चीजें इसी तरह अपने जीवन को प्राप्त करती हैं और फिर अपनी अपनी किस्मत के हिसाब से इस दुनिया से रूख्सत हो जाती है।

हर चीज, जो आरंभ होती है उसका अंत भी होना है, जो भी चीज वजूद में आती है वह इस बात का संकेत देती है कि उसे जाना भी है। अल्लाह जिसका न कोई आरंभ है और न अंत, वह अकेला है और अनंत समय तक रहने वाला है। यह अल्लाह ही है जो इस बात को संचालित करता है कि किसे इस दुनिया में आना है और किसे नहीं, किस समय में और वही जो प्रत्येक की किस्मत का फैसला भी करता हैं वह स्वयं हर प्रकार के उतार चढ़ाव से मुक्त है, हर घटने और बढ़ने वाली चीज से, जीवन और मौत से। वही है जो सारे समय चाहे वह अतीत हो, या वर्तमान हो या भविष्य सभी को पैदा करता है और अपने हुक्म के अनुसार कार्य करने का आदेश देता है। कोई चीज ऐसी नहीं है जो उसके अख्तियार और शक्ति से बाहर हो। इसलिए किसी भी चीज के वजूद में आने की घटना को केवल प्रकृति से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता, बिना ईश्वर को उसमें शामिल किए हुए। यह कहना कि हर चीज अपने प्राकृतिक नियम के अनुसार ही वजूद में आती है और उससे ईश्वर का कुछ लेना देना नहीं है, सरासर गलत है। जो भी चीज सामने आती है वह ईश्वर के आदेश और उसकी दया से आती है और उसे निश्चित कार्य को करने का आदेश दिया जाता है सारी चीजें चाहे वह सजीव हों या निर्जीव, वह दुनिया में इसलिए वजूद में आती हैं कि अल्लाह की शक्ति, उसके सामर्थ्य, उसके ज्ञान और सुंदरता को दुनिया के सामने प्रकट करने में अपनी सहायक भूमिका निभा सके। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो उन्हें जाने का आदेश दे दिया जाता है और उनकी जगह या उसकी जगह कोई दूसरा आ जाता है या दूसरी चीज आ जाती है।

हर चीज जो जीवन और मौत आती है वह इसी ढांचे में रह कर अपना काम करती है और फिर उसकी जांच भी की जाती है। बिना किसी चीज के किसी चीज का वजूद में आ जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि कोई अदृश्य जीव है जो मौजूद है और फिर किसी चीज या जीव का अपना काम पूरा करना और एक समय के बाद यहां से उसका रूख्सत हो जाना वह इस बात को दर्शाता है कि ईश्वर है जो जीवन-मरण के बंधन से आजाद है और अनंत समय तक बाकी रहने वाला है। जो अतीत या भविष्य की सीमाओं में बंधा हुआ नहीं है। हमारा देखना, सुनना, जानना हमारे दिमाग को उस ओर ले जाता है जहां ईश्वर है और जो हमारी सारी बातों को सुनता है, देखता है और हमारे सारे कार्यों से वाकिफ है। इस दुनिया में हमारे काम का पूरा होना और यहां से चले जाना हमारे दिमाग को उसी अकेले ईश्वर की ओर ले जाता है जो इसके विपरीत न तो इस प्रकार हमारी तरह पैदा होता है जैसा कि हम होते हैं और न हमारी तरह हमेशा हमेशा के लिए रूख्सत ही होता हैः अल्लाह जिसने जिंदगी और मौत को पैदा किया, ताकि वह जांचे कि कोन अपने कार्य के ऐतबार से बेहतर है। (मुल्क 67:2)

इसलिए इस बात को अच्छी तरह समझना है कि हम दुनिया में क्यों भेजे गए हैं और हमारी जांच होगी, बेहद जरूरी है, ताकि हमारे लिए जब भी यहां से जाने का आदेश दिया जाए उसके लिए हम पूरी तरह तैयार रह सकें।

आईए अब हम अपने मूल प्रश्न की ओर लौटते हैं- क्या जो लोग प्राकृतिक आपदा के दौरान मारे जाते हैं और वह भी सैकड़ों और हज़ारों की संख्या में, क्या उन सब की मौत एक ही निश्चित समय में आती है?

हां, जो लोग इस प्रकार मारे जाते हैं उन सबका नियत समय एक ही बार होता है। इस प्रकार की घटना में कोई रूकावट नहीं होती। अल्लाह जो सारी दुनिया का मालिक है और कर्ता-धर्ता है, वह अपने अख्तियार में सारी चीजों को रखता है और उसने हर चीज को चाहे वह एक छोटा सा अणु या बड़े से बड़ा तारा हो, सब अपने-अपने भाग्य के अनुसार ही वजूद में आए हैं और अल्लाह जब चाहे अकेले या एक साथ इन्हें नष्ट कर सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चीजें या जीव एक स्थान पर रहते हैं, अलग अलग या भिन्न वर्गों में हैं या उनके अव्यय अलग अलग हैं और न ही उसके सामने उनकी संख्या का कोई महत्व है।

अल्लाह की ताकत को बताने या समझाने के लिए यह संभव है कि कई सारी बातें पेश की जाएं ताकि लोगों को यह समझ में आ सके कि उस असीम शक्ति वाले अल्लाह की ताकत का वास्तविक अर्थ क्या है लेकिन फिर भी यह बेहद कठिन है कि इस बात को किसी एक उदाहरण द्वारा समझा दिया जाए।

हर जीव को जिंदा रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत है और जो अपने प्रकट रूप में प्रकाश यानि रौशनी है। हर चीज को जिंदा रहने के लिए किसी न किसी सतह पर सूरज की रौशनी की जरूरत है और ऐसा वह दूसरे जीवों के साथ पूरी सामंजस्यता बेहतर परिणाम के साथ बिठाता है। तरह तरह के पौधे अपना भिन्न रंग, रूप और निखार सूरज की रौशनी से ही हासिल करते हैं और फिर फलते फूलते हैं या मुरझाते हैं, उसी उसकी की रौशनी और उसके के साथ। उसी प्रकार, वे सभी बसंत में खूब लहलहाते हैं, गर्मियों में खिल उठते हैं और फिर पतझड़ में मुरझा जाते हैं, यानि अपने भाग्य को उसी सामंजस्यता के साथ जीते हैं और उससे आनंद उठाते हैं। हर चीज जो दुनिया के वजूद में आती है वह अल्लाह के आदेश और योजना के अनुसार ही आती है। कोई भी चीज इस परिधि से बाहर हो कर अपना अस्तित्व प्राप्त नहीं कर सकती। ..........और वह जानता है कि जो कुछ भी जमीन के ऊपर है, जो चीज समुद्र की गहराई में है, ऐसा कोई पत्ता नहीं गिरता जो उसके ज्ञान में न हो और न ही ऐसा कोई दाना है जो जमीन के अंधेरे में जाता है, न कोई चीज जिंदा या मुर्दा, लेकिन वह सब अल्लाह की किताब में दर्ज है। (अनअम 6:59)

अगर जीवन को प्राप्त करना, फलना फूलना, और बीजों का मर जाना और फिर उसका पौधों के रूप में बाहर आना वह सब कुछ अल्लाह की किताब में पहले से लिख लिया गया है, तो क्या इंसान, जिसे अल्लाह ने सभी जीवों से बेहतर बनाया है, उसे बिना किसी ध्यान के यूं ही जीने- मरने के लिए छोड़ा जा सकता है? अल्लाह जो जमीन और आकाश मे मौजूद सारी चीजों को पैदा करने वाला है, वह इस बंधन में बंधा हुआ नहीं है कि वह एक समय में एक ही चीज को सुन रहा है तो दूसरी चीजों को सुन या देख नहीं सकता है। वह निश्चित रूप से इंसान को, जो उसकी निगाह में सर्वश्रेष्ठ जीव है, वह उसके कार्यों और आचरणों को महत्व देगा, जो दुनिया के वजूद में आने के एक प्रमुख कारणों में से एक है और जिसे बेहतरीन तरीके से पैदा किया गया है। उसे अल्लाह अवश्य ही सारे जीवों के मुकाबले अधिक नेअमतों से नवाजेगा। वह निस्संदेह इंसानों को एक दिन अपने सामने बुलाएगा और फिर उसे खास दावत देकर दरबार में आने की इज्जत बख्शेगा और उसे अजीम नेअमतों से नवाजेगा।

अल्लाह की ओर से आने का बुलावा अलग अलग भी आ सकता है और समूहों में भी, कभी कभी आपकी मौत बिस्तर पर होती है तो कभी युद्ध के मैदान में और कभी कभी आप किसी दुर्घटना के शिकार होते हैं तो कई बार किसी प्राकृतिक आपदा के हाथों मारे जाते हैं। हो सकता है कि अल्लाह की ओर से यह बुलावा एक ही समय में एक ही स्थान पर भी आ जाए या फिर भिन्न-भिन्न लोगों का मौत से सामना भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न तरीकों से हो। इन मामलों से निपटने के लिए अल्लाह न तो किसी समय की सीमा में बंधा है और न ही किसी स्थान या किसी गिनती के। जो अल्लाह लोगों को पैदा करता है और फिर उसे इस दुनिया में भेजता है, जो सभी को जिंदा रखता है और पालता पोसता है और वह जिसे जब तक चाहे इस दुनिया में जिंदा रखता है और फिर उसकी नियत की गई सेवाओं के पूरा हो जाने के बाद उसे अपने पास बुला लेता है। उसके लिए यह बेहद आसान है कि किसी को वह अकेले बुलाए लेता है। इसके लिए यह बेहद आसान है कि किसी को वह अकेले बुलाए या फिर किसी इंसानों के समूह के साथ। इस बात को इस उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि किस प्रकार युद्धभूमि में एक सैनिक कमांडर का आदेश पूरी सेना के लिए बाध्यकर होता है और किसी भी सेनापति अपने एक आदेश से किसी एक सैनिक को या पूरी सेना को उसकी सेवा से बरख्वास्त करने का आदेश सुना सकता है।

उसके अलावा, केवल एक फरिश्ता लोगों की रूहों को निकालने के लिए नियुक्त नहीं किया गया है बल्कि अनेक फरिश्ते इस काम में लगे हुए है। अल्लाह के आदेश से, कई फरिश्ते एक साथ लोगों के पास आकर उनकी जान क़ब्ज कर सकते हैं। यह काम वह उस लिखित आदेश के मुताबिक करते हैं जो उन्हें करने से पहले थमाया जाता है। इस काम को वह लोगों के साथ कई प्रकार से अंजाम दे सकते हैं। अगर किसी खास घटना या प्राकृतिक आपदा पर गौर करें तो आप पाएंगे कि जो कुछ मामला पेश आया वह पहले से अल्लाह के यहां तयशुदा था और सभी लोगों की मौत एक खास समय में होनी थी। इस प्रकार के कई उदाहरण अक्सर अखबारों, टेलीविजन और किताबों में पढ़ने और देखने को मिल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, भूकंप को ही ले जीजिए जिसमें पूरा का पूरा शहर ही तबाह व बरबाद हो जाता है, उसमें बड़े-बड़े अपनी सारी कोशिशों के बावजूद मारे जाते हैं मगर उसके विपरीत कई नवजात बच्चे बिना किसी खरोंच और जख्म के जिंदा सलामत मलबे से बाहर निकाल लिए जाते हैं और वह भी कई दिनों तक उसमें फंसे रहने के बाद। कई बार ऐसा भी होता है कि आपकी कार या बस नदी मंे गिर जाती है और उसमें से कई तो तैर कर बाहर निकल आते हैं और अनेक उसमें डूब कर मर जाते हैं, उनमें बच्चे कई बार आश्चर्यजनक ढंग के बच जाते हैं और पानी पर किसी चीज के सहारे तैरते हुए दिखाई दे जाते हैं। उसी प्रकार यह भी देखा गया है कि किसी हवाई जहाज में अगर हादसा हुआ है और लोग मारे गए हैं तो हादसे की जगह से कुछ दूर नवजात बच्चे जिंदा पाए गए हैं। हम इस प्रकार के अनेक उदाहरण दे सकते हैं। लेकिन यह महत्वपूर्ण बात है कि इस प्रकार के प्रत्येक हादसे या बचाव में, जो कुछ होता है वह अपने आप नहीं होता बल्कि इसके पीछे अल्लाह की मर्जी और हिकमत शामिल होती है।

हर इंसान जो इस दुनिया में आता है चाहे वह अकेले आए या फिर बहुत से दूसरें लोगों के साथ आए, वह उतने ही दिनों तक जिंदा रहता है जितने दिनों तक उसके लिए जिंदा रहना अल्लाह की किताब में पहले से लिख दिया गया है। उसे जिंदगी में अल्लाह के आदेश से ही यह हुक्म दिया जाता है कि वह अपनी फिरत को पहचाने और अल्लाह की बेपनाह खूबसूरती का अवलोकन करे जो उनकी नजरों से ओझल हो तब भी, वह इस जमीन पर अल्लाह के बेपनाह कमालात को दिखाने के लिए एक आईना बने और उसके अपार गुणों का व्याख्याता का किरदार निभाए। लेकिन हो सकता है कि इन सब के बावजूद उसे अल्लाह अपने पास बुला ले चाहे अकेले बुलाए या किसी समूह के साथ। अल्लाह के लिए पहले से किसी के अंत के बारे में जानना बेहद आसान है। उसके अलावा, अल्लाह ने इस बात का खुलासा किया है कि उसके भेजे हुए बेशुमार फरिश्ते हैं जो लोगों की रूहों को निकालने के लिए नियुक्त किए गए हैं, उन बेशुमार फरिश्तों के अलावा जो दूसरे भिन्न-भिन्न कामों में लगाए गए हैं।

कोई व्यक्ति अब यह सवाल पूछ सकता हैः आखिर बहुत से बेगुनाह या निर्दोष लोग क्यों किसी प्राकृतिक आपदा का शिकार होते हैं जबकि ऐसी आपदाओं में गुनहगारों को ही मरना चाहिए? इस प्रकार का प्रश्न कुतर्क एवं ईमान की खराबी के कारण पैदा होते हैं अगर हमारी जिंदगी केवल दुनिया में बाकी रहने वाली जिंदगी होती और अगर यह दुनिया जीवन का पहला और अंतिम पड़ाव होती तो हो सकता है कि यह प्रश्न कुछ तर्कसंगत लगता। लेकिन यह दुनिया तो दूसरी दुनिया के लिए तैयारी की जग है और उस दुनिया के लिए कुछ प्राप्त और जमा करने की जगह है जहां हमें इस दुनिया में जीवन गुजारने के बाद जाना है, हमें उस दुनिया में वह जगह नसीब होगी जहां हमें हर किस्म का सुख और चैन मिलेगा और हम हर प्रकार की मुसीबत और मेहनत से आजाद होंगे तो फिर इस प्रकार का सवाल बेमानी हो जाता है। जीवन की जो हकीकत है अगर उसको सामने रखा जाए तो यह अप्राकृतिक नहीं है कि बुरे और अच्छे लोग एक साथ इस दुनिया से उठाए जाएं, गुनहगार और नेक लोगों का बुलावा एक साथ हो। यह बेहद तर्कसंगत एवं अर्थवान लगता है कि ऐसा हो। हर इंसान को दुबारा मौत के बाद उठाया जाएगा और उससे उसके कर्मों का हिसाब किताब लिया जाएगा कि वह दुनिया में क्या कुछ करता रहा है और फिर उसके काम और उसकी मंशा के अनुरूप उसे जज़ा और सज़ा दी जाएगी।

सारांश के तौर पर कहें तो मौत इंसान के लिए इस दुनिया से उसके जाने और उसकी सेवाएं समाप्त होने का एक चिन्ह है। उसका जीवन और फिर उसका मरना इस बात को दर्शाता है कि जो कुछ हो रहा है वह पहले से योजनाबद्ध तरीके से अंजाम पा रहा है और सब कुछ अल्लाह के यहां लिखा हुआ है और उस लिखी हुई किताब के मुताबिक जिस काम को अंजाम दिया जाना है उसे उस नियत समय पर पूरा कर लिया जाता है और उसमें केवल अल्लाह की मर्जी ही शामिल होती है। किसी एक व्यक्ति की मौत हो या उनके लोगों की मौत, अल्लाह के तयशुदा सिद्धांत में कोई अंतर नहीं पाया जाता।

मुझे लगता है कि अल्लाह के बारे में लोगों को कमजोर और मामूली समझ है और कोरा ज्ञान है वह इस प्रकार के निराधार प्रश्नों को उनके मन में खड़ा करे का काम करता है और अपने ईश्वर के प्रति उसके मन में तरह-तरह की शंकाओं और गलत धारणाओं को जन्म देता है। एक दूसरा कारण भी है कि हम चीजों और घटनाओं को अंदाजा गलत तरीके से करते हैं या लगाते हैं। अगर कोई इंसान नेकी की राह न गुजारे, ईमान और यकीन के साथ जिंदगी न गुजारे तो वह हर काम या घटना को महज एक इत्तेफाक या प्राकृतिक प्रक्रिया का एक हिस्सा कह कर नजरंदाज करने की कोशिश करता है और उसके मन में तरह-तहर की शंकाएं और शैतानी बातें जन्म लेती रहती हैं।

इंसान का दिल इल्म का प्यासा होता है और उसकी प्यास केवल उसके अकेले दम पर पूरी नहीं हो सकती, इसलिए उसके मन में इस प्रकार निरंतर पैदा होने वाली शंकाएं उनके आध्यात्मिक जीवन को बुरी तरह से तबाह व बर्बाद कर देती हैं। ऐसे हालात में यह कोशिश करनी चाहिए कि नौजवानों को उनके ईमान और मजहब की बातों से गहराई से जोड़े रखा जाए न कि उन्हें अपने हाल पर यूं ही भटकने के लिए छोड़ दिया जाए।

हो सकता है कि ऐसा दावा किया जाए कि हम इस प्रकार की समस्याओं पर आज कल कुछ ज्यादा ही तवज्जोह देते हैं और हो सकता है कि कुछ लोगों को यह अधिक आवश्यक या उचित न लगे। लेकिन हम इस बात पर सहमत हुए बिना नहीं हो सकतेः दूसरे सारे कामों के मुकाबले अधिक महत्व एवं प्रमुखता दी जानी चाहिए। उस पर निरंतर सोच विचार किया जाना चाहिए।

1.3 हालांकि इज्राईल एक हैं, तो फिर वह कई लोगों की रूहों को एक साथ एक ही समय पर कैसे कब्ज करते हैं?

फरिश्तों की कसम, जो बदबख्तों की रूहों को सख्ती से निकालते हैं। उन फरिश्तों की कसम जो नेक लोगों की रूहों को बेहद नर्मी एवं इत्मीनान के साथ निकालते हैं। उन फरिश्तों की कसम जो अल्लाह की रहमत के साथ जमीन पर उतरते हैं। (नाज़ियात 79:1-3)

यहां फिर हमारा सामना एक ऐसे सवाल से हो रहा है कि अगर उसे इंसानों के द्वारा दिए गए उदाहरणों के जरिये समझाने की कोशिश की गई तो हम गलत दिशा में भटक जाएंगे। यह मानना कि फरिश्ते इंसानों की तरह है बिल्कुल गलत धारणा है, ठीक वैसे ही जैसे कोई अपने सर के अंदर, अपने देमाग के अंदर अपनी बुद्धि को देखने की कोशिश करे या अपने दिल के अंदर उमड़ने वाली भावनाओं को या अपने शरीर के अंदर की आत्मा को या दर्शन शास्त्र की भाषा में, साधारण को असाधारण में तलाश करने की कोशिश करे। इस सवाल का ठीक-ठीक जवाब देने से पहले इस बिंदु को सामने रखना उचित होगा कि हमारी सोच एवं सोचने का जो तरीका है वह संभवतः इस प्रकार के प्रश्नों को हमारे अंदर जन्म देता है।

फरिश्ते, जहां तक उनकी उत्पत्ति एवं गुण का सवाल है, जिस क्षेत्र में वह पाए जाते हैं और उनका जो दायित्व एवं कार्य होता है, इन सब को यदि सामने रख कर बात की जाए तो वह दूसरे सारे जीवों से भिन्न जीवन होते हैं। बिना उस फर्क को सामने रख कर अगर इस प्रकार की कोई भी बात सामने रखने की कोशिश की गई तो फिर उसका गलत साबित हो जाना अवश्यंभावी है। उनकी प्रकृति को उनकी भिन्न उत्पत्ति एवं गुण के आधार पर ही समझने की कोशिश करनी चाहिए, उनके अधिकार क्षेत्र अलग होते हैं और उनके दायित्व एवं कार्य भी भिन्न होते हैं।

मलक जो अरबी में फरिश्तों के अर्थ में लिया जाता है उसका अर्थ होता है शक्ति या फिर उसका अर्थ संदेशवाहक भी होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि फरिश्ते न केवल बेहद शक्तिशाली होते हैं बल्कि वह संदेशवाहक भी भूमिका भी अदा करते हैं, जिन्हें बहुत से कार्य करने के अधिकार दिए गए हैं: इस प्रकार फरिश्ते अल्लाह के संदेशों को हम तक पहुंचाने का काम करते हैं। इस प्रकार का उच्च ओहदा लगभग सभी फरिश्तों को हासिल है। फरिश्तों को इस बात के लिए नियुक्त किया गया कि वह अल्लाह के रसूलों तक उसका पैगाम पहुंचाएं, इसलिए उनके अंदर उन गुणों का होना बेहद आवश्यक है जो ऐसे काय्र के लिए बेहद जरूरी होते हैं। फरिश्तों को कायनात में जो कुछ हो रहा है उसके संचालन में अपनी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसमें इंसान और दूसरे जीवों की पैदाइश, मौत और साथ ही अल्लाह के अर्श अर्थात उसकी कुर्सी उठाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है और वह अल्लाह के कामों को बेहद हैरत, आश्चर्य, प्रशंसा एवं अचरज की नजर से देखते हैं। जितने भी तथाकथित प्राकृतिक नियम हैं, चाहे वह द्रव्यमान के बीच आकर्षण से विकर्षण का नियम हो, चाहे एलेक्ट्रान को अपने नाभिक पर घुमाने का सिद्धांत हो या फिर इन नियमों को प्रभाव में लाने की बात हो, चाहे सारे बदलाव एवं सुधार की प्रक्रिया हो, संगठन या अपगठन की बात हो, वह सब कुछ फरिश्तों की देखरेख में अंजाम पाता है, जो अल्लाह के आदेश एवं शक्ति के प्रदर्शन के लिए एक वाहक का काम करते हैं। फरिश्ते दुनिया की सारी चीजों के साथ इस प्रकार जुड़े होते हैं कि बारिश की एक बूंद या बिजली की एक कड़क की भी कल्पना हम उनके बिना नहीं कर सकते। दुनिया का सारा निज़ाम प्रकृति की अपनी शरीयत यानि कानून के मुताबिक चलता है और उसमें कानून के मुताबिक चलता है और उसमें अल्लाह की असीम शक्ति दिखाई देती है, वह फरिश्तों को उसके अपने अपने कार्य एवं क्षमता के हिसाब से जिम्मेदारियां सौंपता है। साथ ही जितने भी ताशरीरी अर्थात संवैधानिक आदेश होते हैं अल्लाह की ओर से उसे फरिश्ते ही हम तक पहुंचाने का काम करते हैं। चूंकि इंसानों को अल्लाह के सारे विभूतिमान अविर्भाव का केंद्र बिंदु माना जाता है, इंसानों रहनुमाई एवं मार्गदर्शन के लिए जो भी आदेश उसकी ओर से आते हैं। वह इसके सिवा और कुछ नहीं है कि अल्लाह अपना अविर्भाव फरिश्तों के माध्यम से करता है। अगर इस बात को ध्यान में रखा जाए तो उनकी तुलना इंसानों के बीच एक पुल का काम करते हैं और जिन्हें दुनिया के सारे छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा कार्य को अंजाम लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है वह सब कार्य को पूरा करने के लिए अल्लाह की ताकत पर ही निर्भर करते हैं। इसलिए यह सोचना कि फरिश्ते भी उन ही बंदिशों से बंधे होंगे जैसा कि इंसान यह बेहद नासमझी वाी बात होगी। अगर फरिश्तों का भी वैसा ही रूप रंग होता जैसा कि हम इंसानों का है, उनको भी मौत और बीमारी सताती, समय के साथ वह भी बूढ़े होते और अप्रभावहीन हो जाते, तो फिर हम उनको इंसानों के साथ रखने की कोशिश कर सकते थे। लेकिन इन दोनों के बीच तो आसमान और जमीन का फर्क पाया जाता है इसलिए उनकी तुलना करना ही बेमानी हैं

जहां तक उनकी उत्पत्ति एवं प्रकृति का सवाल है, वह इंसानों से बिल्कुल मुख्तलिफ होते हैं। उनको जो शक्तियां एवं जिम्मेदारियां दी गई हैं वह समय एवं स्थान की परिधि में बंधे हुए नहीं हैं। उनके अंदर जो शुद्धता, नूर अर्थात उच्च कोटि का प्रकाश और ओजस्विता पाई जाती है, वह उन्हें और अधिक शक्तिशाली, प्रभावशाली, तेज और सक्रिय बना देती है। वह एक साथ कई आत्माओं के साथ संपर्क बना सकते हैं, वह कई आंखों से देखे जा सकते हैं और अपने आपको भी कई रूपों में सामने वह कई आंखों से देखे जा सकते हैं और अपने आपको भी कई रूपों में सामने ला सकते हैं, चाहे वह जिस घड़ी या जिस स्थान पर ऐसा करना चाहें, इसके बावजूद कि वह अकेले अपना अस्तित्व रखते हैं। हज़रत आएशा की एक हदीस में पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. ने इरशाद फरमायाः “फरिश्ते नूर से पैदा किए गए हैं।”4 इसलिए उनके अंदर प्रकाश या रौशनी के अंदर पाए जाने वाले सारे गुण अता किए गए हैं।

चमकने वाली चीजें जैसे सूरज, हालांकि वह एक है, वह प्रतिबिंबित हो कर पारदर्शी चीज के द्वारा दिखाई देता है; उसे हर आंख देख सकती है और उसे पा सकती है। उसी प्रकार, फरिश्ते जो रौशनी से पैदा किए गए हैं, वह कई रूहों से एक साथ मिल सकते हैं या उसमें प्रकट हो सकते हैं। एक ही लम्हे में वह हजारों के साथ मामला कर सकते हैं फरिश्ते जिनका एक गुण बेहद लतीफ अर्थात सूक्ष्म होना भी है, वह जो भी भौतिक रूप होते हैं, जिनका घनत्व और भार भी काफी होता है, वह जो भी भौतिक रूप होते हैं, जिनका घनत्व और भार भी काफी होता है, फरिश्ते उसके मुकाबले बेहद अलग होते हैं। फरिश्ते कई रूपों में प्रकट हो सकते हैं, इसलिए वह उसी लम्हा किसी भी रूप में दिखाई दे सकते हैं। तमस्सुल जिसका अर्थ होता है फरिश्तों का प्रकट रूप में सामने आना, उसकी कई मिसालें उन लोगों के साथ देखी गई हैं जो बेहद धार्मिक पुरूष हैं और उनके अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं। हम अक्सर ऐसी बातें भी सुनते हैं कि किसी इंसान की रूह या आत्मा कहीं और दिखाई पड़ी है और वह भौतिक प्रभाव पैदा करने की क्षमता रखती है। ऐसी बातों में जो भी सच्चाई हो, वह इस बात की ओर इशारा करते हैं कि ऐसे सारे जीव जो बेहद सूक्ष्म होते हैं जैसा कि इंसान की रूहें, वह उनकी शारीरिक बनावट की तुलना में अधिक योग्य, तीव्र और सक्रिय होती हैं। फरिश्तों में तो यह गुण और भी अधिक पाया जाता है, इसलिए यह माना जा सकता है कि वे भौतिक प्रकृति से बाहर जाकर अपना काम करते हैं।

जैसा कि हमने कहा है, आत्माओं अर्थात रूहों और फरिश्तों का इंसानी शक्ल में आने की बात पहले से चली आ रही है। ऐसा अनुभव पहले पहल पैग़म्बरों को हुआ फिर महान सूफी बुजुर्गों को हुआ और बहुत से साधारण लोग उनके पास मौजूद थे, उन बातों के गवाह रहे हैं। फरिश्तों के सरदार जिब्रील अ. का अल्लाह के नबी के पास भिन्न-भिन्न रूपों में आना, अपने कार्य एवं मिशन की आवश्यकता के हिसाब से, यानि जब उन्हें अल्लाह का पैगाम पहुंचाना होता था तो संदेशवाहक की भूमिका में होते थे और जब युद्धभूमि में मदद करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी तो योद्धा के रूप में नजर आते थे। ये सारे उदाहरण तमस्सुल को समझाने के लिए बेहतरीन उदाहरण हैं। जिब्रील एक बार दिहिया5 के वेश में प्रकट हुएः एक दूसरा फरिश्ता अल्लाह के रसूल के साथ शाम तक युद्धभूमि में दुशनों से मुसाब इब्ने उमैर6 के वेश में लड़ता रहा; बहुत से फरिश्ते प्रसिद्ध बदर की लड़ाई में जुबैर इब्ने अव्वाम के वेश में लड़ाई करते रहे ताकि मुसलमानों की हौसला अफजाई हो सके।

ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जिससे पता चलता है कि कुछ सूफी बुजुर्ग इस प्रकार की अदृश्य शक्तियों के संपर्क में थे, जिनमें अल्लाह के नबी के साथी अर्थात सहाबा एकराम भी शामिल हैं। साथ ही वह उनके सपनों में या फिर नीम बेहोशी की हालत में हाजिर होते थे और इससे इस तर्क को पुष्ट करने में मदद मिलती है। बहुत से खुदातरस पुरूष और महिलाओं ने इस बात की गवाही दी है कि उनके सपनों में एक खास प्रकार की आत्माएं हमेशा उनके संपर्क में रहती थीं ताकि उनका मार्गदर्शन कर सकें। इसलिए बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इसे अवचेतन मन की घटना कह कर नजरंदाज कर सकते हैं और जिससे इस पूरी बात को और दुरूह बना सकते हैं। हमें उनकी नामसझी और अज्ञानता पर तरस आता है।

इस बात को सारांश रूप में इस प्रकार समझा जा सकता हैः ठीक जिस प्रकार सारे जीव एक आईने में प्रतिबिंबित होते दिखाई देते हैं, इसलिए फरिश्ते भी हर चीज में दिखाई देते हैं और जो उनके लिए आईना का रूप ले सकते हैं, लेकिन इस फर्क के साथ कि फरिश्ते कोई एक तस्वीर या बिंब नहीं हैं, जैसा कि आईना का प्रतिबिंब होता है, बल्कि वह अपनी पूरी ताकत और खूबियों के साथ काम करने वाले जीव होते हैं। रौशनी की किरणों की तरह, फरिश्ते भी एक साथ कई स्थानों पर एक ही समय में पहुंच सकते हैं और अपने दायित्वों को पूरा कर सकते हैं, उनके लिए न तो स्थान की दूरी का कोई महत्व है और न ही लोगों की संख्या का। इससे उनके कामों में कोई रूकावट नहीं आती। सूरज तो एक ही है मगर उसकी रौशनी हर ओर बिखरी रहती है और हर चीज उसकी मौजूदगी को महसूस करती है, हर चीज अपनी-अपनी खूबियों के हिसाब से उसकी उपस्थिति को महसूस कर सकती है। उसी प्रकार, फरिश्ते जिनकी पैदाईश नूर से की गई है, वह हर जगह दिखाई दे सकते हैं, लोगों के अंदर रूह फूंक सकते हैं या मौत के वक्त उनकी रूह को कब्ज कर सकते हैं और अपने दूसरे दायित्वों को पूरी खुबी के साथ कर सकते हैं और ऐसा वह किसी भी समय करने की काबलियात रखते हैं।

वास्तविकता तो यह है कि केवल अल्लाह है जो इंसान को जिंदगी बख्शता है और फिर उसे मौत की नींद सुलाता है। इज्राईल अ. तो केवल एक माध्यम मात्र हैं, जिन्हें जीवन देने का काम सौंपा गया है और फिर लोगों की रूहों को निकालने की जिम्मेदारी दी गई है और फिर वह हर वक्त अल्लाह की प्रशंसा करते रहते हैं। चुंकि अल्लाह हर जगह और हर समय में मौजूद रहता है और असंख्य कामों को पूरा करता है जो हमारी समझ से परे की बात है, उसको सामने रखते हुए यह स्वीकार करना मुश्किल नहीं मालूम होता है कि वह एक लम्हे में कई लोगों को जिंदगी दे भी सकता है और उनकी जिंदगियों को छीन भी सकता है और वह भी एक झटके में। ईश्वर जो सर्वशक्तिमान है, वह निस्संदेह सारे कार्यों को देख सकता है, उसके निर्देशित कर सकता है और उन्हें संचालित कर सकता है, जीवन दे सकता है और ले भी सकता है, चाहे वह असंख्य लोगों का जीवन हो या असंख्य दूसरे तत्वों का जो पूरी कायनात में मौजूद होते हैं और वह भी एक ही क्षण में, हालांकि कुछ बदकिस्मत किस्म के नास्तिक इसे मानने से इनकार कर सकते हैं।

चाहे अल्लाह या इज्राईल अ. लोगों की रूह को कब्ज करते हों, जिस जीव का भी अंतिम समय आता है वह मौत से पहले अल्लाह की ओर झुकता है और फिर उसकी रूह को कब्ज किया जाता है। हम इस बात को एक मिसाल के जरिये और आसान बना सकते हैं मान लीजिए कि हजारों लाखों रेडियो एक साथ एक समान आवृत्ति पर काम कर रहे हैं। अगर कोई भी ट्रांसमीटर उस समान आवृत्ति पर संकेत भेजता है तो फिर उसे सारे रेडियों पर एक साथ सुना जा सकता है। उसी प्रकार सारे जिंदा जीव अल्लाह की रहमत पर जिंदा रहते हैं और जब वे उससे कुछ मांगते हैं, यानि अपनी गरीबी, दयनीयता एवं लाचारी की हालत में मांगते हैं और जब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचते हैं और ईश्वर की ओर झुकते हैं, मानों जीवन की समाप्ति वाली आवृत्ति पर स्वीच ऑन कर रहे हों, वे मौत के संकेत को महसूस करने लगते हैं। अगर एक लाचार इंसान लाखों करोड़ों मील पर किसी स्थान पर जीवन से केवल एक बटन दबा कर संपर्क स्थापित कर सकता है, तो फिर अल्लाह जो हर चीज का पैदा करने वाला है ऐसा क्यों नहीं कर सकता, जबकि वह इस प्रकार की हर कमजोरियों, दुर्बलताओं से पाक है, वह प्रत्येक जीव से इस प्रकार संपर्क स्थापित कर सकता है मानों कि वह कोई जिंदा मशीन हो। आखि रवह एक लम्हे में सारे कामों को शुरू और खत्म क्यों नहीं कर सकता?

सारांश

1. अल्लाह ही है जो जीवन देता है और उसे लेता भी है। इज्राईल तो केवल उनके नियुक्त किए हुए दूत की भूमिका निभाते हैं और उसके बताए कार्यों को अंजाम देते हैं और अल्लाह की प्रशंसा बयान करते रहते हैं।

2. अपने काम को अंजाम देते हुए इज्राईल जो भी काम करते हैं वह अल्लाह की इजाजत एवं सहमति से करते हैं।

3. चुंकि दुनिया में अल्लाह के कामों को अंजाम देने के लिए अरबों खरबों की संख्या में फरिश्ते नियुक्त किए गए हैं, तो उनमें से बहुत से फरिश्ते ऐसे होते हैं जो इज्राईल अ. की मदद करते हैं इस काम में। उन्हें अपने कार्यों के हिसाब से वर्गीकृत भी किया गया हैं कुछ तो उनमें से ऐसे हैं जो लोगों की रूहों को बिना उन्हें कोई तक्लीफ पहुंचाए या भय में मुब्तेला किए निकालते हैं और अपने काम को पूरी शांति और इत्मीनान के साथ अंजाम देते हैं और अपने काम को पूरी शांति और इत्मीनान के साथ अंजाम देते हैं और जब उनकी रूहों को उनके शरीर से निकाल लिया जाता है तो दूसरे फरिश्ते हाथों हाथ उसे अल्लाह के हुजूर में ले जाते हैं। कुरआन इन बातों को इस प्रकार बयान करता हैः उन फरिश्तों की कसम जो बुरे लोगों की रूहों को बेहद सख्ती एवं निर्ममता के साथ निकालते हैं। उन फरिश्तों की कसम जो नेक लोगों की रूहों को बेहद नर्मी एवं प्यार के साथ निकालते हैं और उन फरिश्तों की कसम जो अल्लाह की रहमत से तैरते फिरते हैं। (नाजियात 79:1-3)

इस प्रकार लोगों के गुण एवं अवगुण के हिसाब से उनके पास फरिश्तों को भेजा जाता है। वे सारे इज्राईल अ. की देखरेख में अपना काम करते हैं और फिर अल्लाह उन्हें उनके कार्यों को इस आधार पर सौंपता है कि जिनकी रूहों को उन्हें निकालना है चाहे वह नेक हैं या बुरे।

सारांश के तौर पर हम कह सकते हैं, कि इस प्रकार के प्रश्न हमारे मन में इसलिए खड़े होते हैं क्योंकि हमारी सोच ठीक नहीं होती और हम यह मानने की गलती कर बैठते हैं कि फरिश्ते भी इंसानों की तरह ही होते हैं। हम ने पहले भी इस बात को स्पष्ट किया है कि वे भौतिक रूप से दूसरे जीवों के मुकाबले काफी भिन्न होते हैं; न केवल अपने गुण एवं प्रकृति के हिसाब से बल्कि अपने कामों के हिसाब से भी, उनकी जिम्मेदारियां भी अलग होती हैं और उनकी बंदगी का तरीका भी बेहद अलग होता है। फरिश्ते कोई भी रूप धारण कर सकते हैं, कई स्थानों पर एक साथ मौजूद हो सकते हैं, कई कामों को एक साथ अंजाम दे सकते हैं, जिस प्रकार इंसान की रूहें कर सकती हैं। आज के दौर में अदृश्य शक्तियों से संपर्क स्थापित करने के जो तरीके ईजाद किए गए हैं, वह भौतिक दुनिया में अभौतिक चीजों के काम करने का पता लगा सकते हैं और फरिश्ते भी एक ही घड़ी में कई लोगों के साथ मामला कर सकते हैं। अंत में, हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि रूहों को निकालने के लिए असंख्य फरिश्ते होते हैं और जब हम इस बात को मान लेते हैं कि हर इंसान या जीव की रूह को कब्ज करने की लिए एक फरिश्ता मुकर्रर किया गया है, तो फिर इस प्रकार की शंका में पड़ने की जरूरत ही नहीं है जो इस प्रश्न में उठाया गया है।

अल्लाह ही बेहतर तौर पर जानने वाला है।

1.4 रोजा रखने के पीछे हिकमत अर्थात बुद्धिमत्ता क्या है?

बाज़ चिड़िया का गौरईया पर झपट्टा मारने का मतलब होता है कि गौरईया उससे अधिक होशियार और फुर्ती वाली बन जाती है। हालांकि, कभी-कभी बारिश, बिजली या आग हो सकती है कि मुश्किल चीजें हों मगर यह हमारे शरीर को ऊर्जा, सक्रियता और प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं। हो सकता है कि एक बच्चे के अंदर बीमारी से लड़ने की क्षमता उसकी बीमारी के कारण ही पैदा होती है। व्यायाम करना इतना आसान नहीं होता, लेकिन हमारे शरीर और स्वास्थ्य के लिए यह बेहद आश्यक होता है। इससे हमें ताकत हासिल होती है। उसी रूह इबादत और ध्यान के जरिये, और साथ ही बीमारी, परेशानी, मुसीबत और तक्लीफों के जरिये भी परिश्रकृत। इन चीजों की बदौलत उन्हें जन्नत हासिल होती है क्योंकि अल्लाह आपके छोटे से अमल की बदौलत काफी पुण्य और इनाम देता है। तक्लीफ और परेशानियां इंसान को उच्च आध्यात्मिक बुलंदियों तक ले जाती हैं और दूसरी दुनिया में उसके बदले कई गुणा अधिक सवाब और इनाम दिया जाता। यही कारण है कि लगभग सारे पैग़म्बरों ने सख्त तक्लीफों और परेशानियों का सामना अपने जीवन में किया।

तकलीफ, परेशानी और मुसीबतों के कारण एक ईमान वाले को यह मौका नसीब होता है कि उसके जरिये अपने गुनाहों की माफी अल्लाह से मांग सके, उन्हें गुनाहों से दूर रखने और शैतान के बहकावे से बचने की सलाह देता है। साथ अपने नफ़्स की शरारतों से भी महफूज रहने का मौका मिलता है। इससे उनकी जुबान से अल्लाह की तारीफ और प्रशंसा के बोल जारी होते हैं और वह शुक्रगुजार इंसान बनते हैं। साथ ही वह अमीरों से इस बात का आह्वान करते हैं कि वह गरीबों, बीमारों, बेसहारों की चिंता करें और उनकी मदद करें। जिन लोगों ने कभी तक्लीफें नहीं उठाई हैं वे कभी भी किसी भूखे, बीमार और मुसीबत की परेशानी को नहीं समझ सकते। उसके साथ ही, ये परेशानियां समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संबंध बनाने में भी मदद करती है।

रोजा रखने में नीयत की भूमिका

सभी कार्यों में हमारी नीयत की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि अल्लाह के नबी ने फरमाया है कि हमारे सभी कार्यों का लेखा-जोखा हमारी नीयत के आधार पर किया जाता है। नीयत ही हमारे कार्यों की रूह या आत्मा होती है, क्यों अच्छी नीयत के बिना कोई इनाम नहीं हासिल हो सकता। अगर आप सुबह से शाम तक भूखे प्यासे रहते हैं बिना यह नीयत किए कि आप रोजे से हैं, अल्लाह की निगाह में यह रोजा नहीं माना जाएगा। इसलिए इंसान जो भी नीयत करता है उसके हिसाब से अज्र अर्थात सवाब पाता है। जिनका अल्लाह और इस्लाम के सारे स्तंभों पर पूरा भरोसा और यकीन है और उनकी नीयत भी यह है कि वे उस पर ईमानदारी से अमल करेंगे तो उन्हें जन्नत में अंतहीन खुशी से नवाजा जाएगा। लेकिन जो लोग इस हठ पर कायम रहते हैं कि वे ईमान नहीं लाएंगे और जो जन्मजात प्रवृत्ति के साथ पैदा हुए हैं कि उनके दिल में ईमान पैदा नहीं होगा, तो वे अपने अंजाम के हिसाब से अंतहीन सजा के हकदार होंगे। लेकिन जिनके दिल में बिल्कुल ईमान नहीं है और जिनके अंदर ऐसी क्षमता भी नहीं है कि ईमान ले आएं तो उनके बारे में कुरआन इन शब्दों में बयान करता हैः काफिरों के लिए यह बराबर है कि तुम उनको चेतावनी दो या न दो। वे ईमान नहीं लाएंगे। अल्लाह ने उनके दिलों, कानों और आंखों पर मुहर लगा दी है। (बकरा 2:6-7)

शरीर पर दिल को तरजीह या महत्व देना

इंसानी जिंदगी दो भिन्न-भिन्न शक्तियों का संग्रह हैः रूह और जिस्म। हालांकि कभी कभी वह पूरी सामंजस्यता के साथ काम करते हैं, लेकिन उनमें टकराव की सूरत अधिक देखी जाती है। ऐसा टकराव जिससे एक दूसरे को परास्त कर देता है। अगर शरीर को अपनी इच्छा के अनुसार करने की छूट दे दी जाए तो इंसान की आत्मा अधिक शक्तिहीन हो जाती है क्योंकि वह भी उन्हीं इच्छाओं की गुलाम बन जाती है। अगर कोई अपने शरीर की इच्छाओं पर काबू पा ले और तर्क पर दिल को तरजीह दे (जो आध्यात्मिक समझ की वास्तविक जगह होती है) और जो शरीरिक इच्छाओं का विरोध करे, तो वह इंसान चाहे मर्द हो या औरत अनंत की प्राप्ति कर लेता है या लेती है।

पिछली शताब्दियों से यदि तुला की जाए तो आज के लोग अधिक धन संपदा वाले हैं और आराम और सुख-चैन की जिंदगी गुजार रहे हैं। लेकिन साथ ही वे पहले के लोगों के मुकाबले तरह-तरह की बुराईयों में भी फंसे हुए हैं जैसे लालच, विमोह, व्यसन, और दूसरी चीजें। जितना अधिक वह अपनी पाश्विक प्रवृत्ति को तृप्त करने की कोशिश करते हैं तो उनकी भूख उतनी ही बढ़ती जाती है, यानि जितना अधिक वे शराब का सेवन करते हैं, उसको पीने की प्यास भी उतनी ही बढ़ती जाती है और फिर वह इस जुगाड़ में पड़ जाते हैं कि अपनी इस पाश्विक भूख और प्यास को बुझाने के लिए और अधिक पैसे कमाएं और मामूली से मामूली फायदे के लिए अपने ईमान का सौदा करें। इस प्रकार वह प्रतिदिन वास्तविक मानव मूल्यों से दूर होते जाते हैं।

इंसान की तरक्की के लिए यह बेहद आश्यक है कि वह दुनियावी सुख सुविधाओं के भोग से अपने को दूर रखे क्योंकि इसका उतना ही महत्व है जितना कि एक पेड़ के लिए उसकी जड़ का होता है। ठीक उसी प्रकार यानि जितनी अधिक मजबूत और स्वस्थ जड़ उतना ही पेड़ अधिक मजबूत होगा, इसलिए वे लोग अधिक पुष्टता की ओर जा पाते हैं जो अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठ कर दूसरों की भलाई की बातें सोचते हैं।

रमजान के दिनों में आध्यात्मिक तौर तरीके

मुहासिबा अर्थात आत्मा आलोचना या अपने आप से सवाल व जवाब

स्व-आलोचना को इस प्रकार से वर्णित किया जा सकता है कि इंसान इसके जरिये अपने अंदर की और अपनी आध्यात्मिक गहराई का पता लगाने की कोशिश करता है और साथ ही आवश्यक आध्यात्मिक एवं बौद्धि श्रम लगाता है ताकि वास्तविक मानव मूल्यों की प्राप्ति कर सके और ऐसी संवेदना पैदा कर सके जिससे यह शक्तियां परवान चढ़ती हैं। अच्छे और बुरे में इसी प्रकार फर्क किया जाता है, लाभकारी और हानिकारक में और कैसे कोई अपने दिल को पाक साफ रखता है। उसके साथ ही ईमान वालों को यह मौका देता है कि वह अपने वर्तमान का अवलोकन करें और भविष्य के लिए तैयारी करें। एक बार फिर वही बात सामने आती है कि स्व आलोचना इंसान को अपने अतीत की गलतियों से सबक सीखने का मौका देती है और अल्लाह के सामने नेक होने का मौका देती है, क्योंकि इससे इंसान का दिल हमेशा पाक व साफ होता रहता है। इससे इंसान का अल्लाह के साथ रिश्ता मजबूत एवं सुदृढ़ होता है, क्योंकि इस रिश्ते की मजबूती इस बात पर टिकी होती है कि उसके अपने अंदर क्या चल रहा है। कामयाबी अपने दिव्य गुणों को संभाल कर रखने से हासिल होती है, और साथ ही अपने अंदर सतत् रूप से अपने हवास और एहसास को जगाए रखने से प्राप्त होती है।

तफक्कुर अर्थात चिंतन

चिंतन इस बात के लिए आवश्यक है कि आपके आस पास क्या हो रहा है उसको अच्छी प्रकार से जाने और उससे सबक सीखें। अनुभव के दरवाजे को खोलने के लिए यह सोने की चाबी के समान है, एक ऐसी जरखेज जमीन जहां सच्चाई के बीच बोये जाते हैं और शागिर्दों के दिल की आंखें खोलने में मदद लिमती है। इसी कारण से, पूरी मानव जाति के सबसे महान प्रतिनिधि और जो चिंतन मनन में सबसे आगे थे और दूसरे नेकी के कामों में उनका कोई मुकाबला नहीं था, फरमाते हैं: इंसान का कोई भी काम उससे महत्वपूर्ण नहीं है कि इंसान चिंतन मनन करे। यानि अल्लाह की रहमतों पर गौर करे और उसकी बेपनाह ताकत को स्वीकार करे, लेकिन उसका सार क्या है उस पर न सोचे, क्योंकि तुम कभी भी उसकी तह तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो पाओगे।”8 इन शब्दों के माध्यम से साथ ही चिंतन के लाभ को रेखांकित करते हुए, इंसान की महानता इसमें है कि वह अपने चिंतन मनन की सीमाओं को समझे और अपनी सीमाओं का एहसास कराए।

शुक्र अर्थात कृतज्ञता

किसी भी इंसान के अंदर सही माइनों में कृतज्ञता की भावना तब पैदा हो सकती है जब वह इस बात पर गौर करे कि अल्लाह ने उसे किन-किन नेमतों से नवाजा है और फिर उसी के हिसाब से अपने जीवनक को गुजारे। इंसान चाहे तो व्यक्तिगत तौर पर भी अल्लाह का शुक्रिया अदा कर सकता है या फिर सामूहिक रूप से यह स्वीकार करे कि उसे जो जिंदगी हासिल हुई है, उसकी जो योग्यताएं हैं और जो उपलब्धियां हैं वे सब अल्लाह की रहमत से हैं। इसे कुरआन में कुछ इस प्रकार वर्णित किया गया हैः क्या तुम देखते नहीं कि अल्लाह ने जो कुछ, आसमानों में है और जो कुछ जमीन में है, उन सब को तुम्हारी सेवा के लायक बनाया है और उसने तुम पर अपनी उन नेमतों से नवाजा है जो तुम्हें दिखाई देती हैं और दिखाई नहीं भी देती है। (लुकमान 31:20) और वह तुम्हें वह चीजें देता है जिसे तुम मांगते हो ओर अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनना चाहो, तो तुम कभी गिन नहीं पाओगे। (इब्राहीम 14:34)

इसलिए इंसान को चाहिए कि रमजान के महीनों में अपनी नेकी की खुबियों को बढ़ाए, क्योंकि ऐसा करने का पूरे साल में यह सबसे उत्तम अवसर होता है।

1.5 कुरआन में अबू लहब जैसे इंसान का जिक्र क्यों किया गया है जबकि वह इस्लाम का कट्टर दुश्मन था? आखिर इसके पीछे क्या बुद्धिमत्ता और हिकमत है? आखिर कुरआन जैसी महान ईश्वरीय किताब के साथ यह कैसे मेल खाता है?

अबू लहब अल्लाह के रसूल स. के कई चाचाओं में से एक थे। उसका असली नाम अब्दुल अज्जा था। लेकिन वह अबू लहब के नाम से प्रसिद्ध था जिसका शाब्दिक अर्थ होता है आवेग और शोले का पिता। इस उपनाम से उसे इसलिए पुकारा जाता था क्योंकि उसका चेहरा बिलकुल लाल सुर्ख था, हर समय उसमें ओज और गुस्सा पाया जाता था। इस्लाम के आरंभिक दिनों में वह इस्लाम और मुसलमानों का कट्टर दुश्मन माना जाता था। उसकी यह दुश्मनी उसकी अपनी जन्मजात प्रवृत्ति के कारण आई थी जिसमें घमंड, हठ, और अभिमान पाया जाता था। उसके पास धन दौलत थी बहुत थी और उसकी कई औलादें थीं, उसके अति अहंकार के पीछे एक वजह यह भी थी। इसलिए पैग़म्बर मुहम्मद ने जब अपनी शिक्षाएं देनी आरंभ कीं तो उसने तुरंत उसे नकार दिया। अबू लहब की बीवी, उम्मे जीमल भी अपनी नफरत में पैग़म्बर के लिए उससे भी ज्यादा बढ़ी हुई थी। आम मुसलमानों के प्रति भी उसका रवैया बेहद शत्रुतापूर्ण था। पैग़म्बर के प्रति और आम मुसलमानों के लिए उसके दिल में नफरत का यह आलम था कि वह अक्सर खजूर की रस्सियों से कांटे का बोझा उठाए फिरती थी ताकि वह उसे पैग़म्बर और आम मुसलमानों के रास्ते पर बिछा सकें और उन्हें शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचा सके। वह रात के अंधेरे में उन कांटों को अल्लाह के नबी के घर के आस पास और रास्तों पर बिछा दिया करती थी। साथ ही अपनी चर्ब जुबानी से वह दूसरे लोगों को भी पैग़म्बर और मुसलमानों के खिलाफ भड़काया करती थी।

इस्लाम के उस आरंभिक समय में, अल्लाह के नबी ने एक बार लोगों को बुलाया और उन्हें अपनी शिक्षा देनी चाही। उन्होंने लोगों से पूछा, “अगर मैं तुम लोगों से यह कहूं कि तुम्हारे दुश्मन सैनिक तुम पर इस पहाड़ी के पीछे से हमला करने वाले हैं, तो क्या तुम मेरी बातों का यकीन करोगे? तो उन लोगों ने एक सुर में जवाब दिया, “हां, हम ऐसा करेंगे।” फिर आपने फरमाया, “तो ध्यान रखो, मैं तुम लोगों को एक ऐसे दिन से डराना चाहता हूं जिस दिन दुनिया का वजूद खत्म हो जाएगा।” इतना सुनते ही अबू लहब गुस्से से खड़ा हो गया और औल-फौल बकने लगा। उसने कहा, “क्या तुमने हमने इस लिए बुलाया है ताकि तुम यह बेकार की बातें कह सको। खुदा तुम्हें गारत करे। “उसके तुरंत बाद कुरआन की प्रसिद्ध सूरः लहब जिसे तब्बत भी कहा जाता है, नाजिल हुई। जिसका नाम अरबी शब्द मसद पर पड़ा है जिसका अर्थ होता है ऐंठी हुई रस्सी। कुरआन में जितनी भी सूरः नाजिल हुई हैं उसमें क्रम के हिसाब से इसका नंबर छठा है। इसमें अबू लहब की पैग़म्बर के प्रति बेपनाह शत्रुता का वर्णन किया गया है।

(आवेग के पिता) अबू लहब के हाथ तबाह हुए! वह भी तबाह हुआ। न तो उसकी सारी जायदाद से कोई फायदा पहुंचेगा और न ही उसको उसके दूसरे दुनियावी फायदों से । जल्दी ही वह दहकती हुई आग में डाला जाएगा। उसकी बीवी उस आग को भड़काने के लिए ईंधन उठाए हुई होगी। उसकी गर्दन के चारों ओर ऐंठी हुई खजूर की रस्सी होगी। (मसद 111)

अबू लहब और उसकी बीवी ने अपनी इच्छा और धन दोनों का इस्तेमाल गलत तौर पर किया। हालांकि वह पैग़म्बर के बेहद करीबी लोग थे, लेकिन उसके बावजूद उन लोगों ने कभी यह कोशिश नहीं की कि पैग़म्बर की शिक्षाओं को समझ सकें। जब पैगंम्बर और दूसरे मुसलमान काबा की ओर तश्रीफ ले जा रहे थे तो अबू लहब और उसकी बीवी ने केवल रास्ते में कांटे बिछाए बल्कि जगह जगह आग भी जलाई। सारी जिंदगी उनकी ऐसी ही गुजरी कि वह पैग़म्बर और मुसलमानों के खिलाफ तरह तरह की साजिशें रचते रहें, अपनी नफरत का इजहार करते रहें और उन्हें नुक्सान पहुंचाते रहें इसलिए उनका अंजाम भी उसी प्रकार होना था जैसा कि उन्हांेने कार्य किया था।

अबू लहब बदर की लड़ाई में शामिल नहीं हो सका। वह काबा के पास एक बड़े से तंबू के अंदर बैठा हुआ था जब उसके पास बदल की लड़ाई की खबर पहुंची। जब उसे बताया गया कि किस प्रकार “सफेद पगड़ी वाले इंसान चितकबरे घोड़ों पर सवार हो कर लड़ाई कर रहे थे।” वे लोग जमीन जमीन और आसमान के बीच भरे हुए थे। वे मुसलमानों के लिए काफिरों से लड़ाई कर रहे थे।” इस बात को सुन कर वह बेहद घबरा गया। उम्मे फादिल जो अब्बास की बीवी थी और अबू रफी जो अब्बाव का दास था, वे उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने इस खबर को सुना था क्योंकि ये लोग भी उस समय तंबू के अंदर मौजूद थे। वे दोनों ढके छूपे तरीके से मुसलमान हो चुके थे मगर इसका इल्म अबू लहब को नहीं था। अबू रफी इस खबर को सुनकर इतने उत्तेजित हुए कि वह खुशी पैग़म्बर के विजय गाथा को सुनकर चिल्ला पड़े और खुशी से कहा, “खुदा की कसम, सफेद पगड़ी वाले लोग अल्लाह के भेजे हुए फरिश्ते थे।” अबू लहब को इस बात पर इतना गुस्सा आया कि उसने तुरंत अबू रफी के चेहरे पर एक जोर का तमांचा रसीद कर दिया और फिर उसे धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया और उसके सीने पर जा बैठा और बार-बार घूंसे मारने लगा। तभी उम्मे फादिल उठीं और तंबू को सहारा देने वाली एक मोटी सी लकड़ी उठाई और पूरी ताकत से अबू लहब को दे मारीं। इससे उसके सर पर गहरा जख्म हो गया। उम्मे फादिल बोलीं, “क्या तुम बिना उसकी गलती के उसे मार डालोगे क्योंकि उसका मालिक यहां मौजूद नहीं है और उसकी हिफ़ाजत नहीं कर सकता?” अबू लहब ने उनकी बातों का जवाब नहीं दिया और अपने घर की ओर रवाना हो गया क्योंकि उसकी भाभी लगती थीं। उसके जख्म समय के साथ-साथ भरने के बजाए और गहरे और विभत्स होते गए। उसके साथ ही उसे एक और भयानक बीमारी ने आ पकड़ा जिसका नाम अदासा था और उसके पूरे जिस्म पर उसके फलस्वरूप काले रंग के खतरनाक फोड़े निकल आए। इस बीमारी को उस जमाने में हैजे से भी ज्यादा खतरनाक माना जाता था। उसकी जायदाद, उसके बच्चे और उसका असर रसूख उसके कुद काम न आया जिसको लेकर वह हमेशा घमंड में जिया करता था और डींगे हांका करता था। यहां तक कि उसकी बीवी भी नहीं। यहां तक कि जब उसकी मौत हो गई तो उसकी लाश को भी उठाने के लिए तैयार नहीं हुआ यहां तक कि रेगिस्तानी बद्दुओं को बुलाया गया और उन लोगों ने एक बड़ा सा गड्ढा खोद कर लकड़ी के सहारे उसे लुढ़का कर गिरा दिया और फिर ऊपर से कंकड़ पत्थर से ढक दिया।

पैग़म्बर से इतना गहरा पारिवारिक रिश्ता होने के बावजूद वह उनसे कुछ सीख न सका और उनका कट्टर दुश्मन बन गया। उसके फलस्वरूप, इस दुनिया में और मौत के बाद की दुनिया में भी सख्त सजाएं दी गईं। उसके हाथ जो उसके सारे बुरे कामों के लिए मददगार सिद्ध होते थे वह तबाह हुए और साथ ही वह उसका पूरा शरीर भी। उसकी बातें, उसकी हैसियत और उसकी ताकत सब बेकार साबित हुई।

उम्मे जीमल का ताल्लुक एक बेहद कुलीन खानदान अबू उमैया से था। वह भी अपने पति की तरह ही पैगंबर एवं आम मुसलमानों को तक्लीफें पहुंचाने में कभी पीछे न रही। बल्कि ऐसा करके उसे बेहद खुशी महसूस होती थी। वह कंटीली झाड़ियां चुन कर उसे पैगंम्बर और मुसलमानों के रास्ते में बिछाया करती थी। “अपने साथ ईंधन की लकड़ी उठाए फिरती थी” से यहां यह भी अर्थ लिया जाता है कि वह तरह-तरह की साजिशों भरी बातें गढ़ती रहती थी ताकि लोग उससे गुमराह और भ्रमित हो सकें। हालांकि उसे साज श्रंृगार और गहने जेवर पहनने का बड़ा शौक था और नौकर चाकर से खिदमत करवाना पसंद करती थी मगर उसके बावजूद पैग़म्बर और आम मुसलमानों के प्रति उसके मन में जो गहरी नफरत की भावना थी वह तुच्छ से तुच्छ काम करवाने के लिए मजबूर करती थी यानि कंटीली झाड़ियों चुन कर जमा किया करती थी। उसे अपने गले में नारियल और खजूर के छिलके की बुनी रस्सियां लटकाने में मजा आता था और उसी के सहारे वह कंटीली झाड़ियां ढो कर एक जगह से दुसरी जगह ले जाया करती थी। इसलिए कयामत के दिन उसी सजा भी उसी प्रकार की होगी जिस प्रकार उसने अनवरत मुसलमानों को दुख पहुंचाया था। कुरआन की इस सूरः में इसी आशय को वर्णित किया गया है।

अबू लहब धुन का पक्का और एक जिद्दी किस्म का इंसान था। अबू जेहल जो अबू लहब की इस प्रकृति से वाकिफ था, “कभी उसे गुस्सा मत दिलाओ। अगर वह दूसरे समूह के जा मिलेगा (यानि मुसलमानों के समूह में) तो फिर कोई उसे दुबारा उनसे हटाने में कामयाब नहीं हो पाएगा।” लेकिन बदकिस्मती से अबू लहब ने अपनी यह काबलियत पैग़म्बर मुहम्मद स. से दुश्मनी करने में गवा दी। वह और उसकी बीवी दोनों खाने-काबा में रखे बुतों की बड़ी अकीदत किया करता थे। वे कभी पैग़म्बर की शिक्षाओं पर तवज्जो नहीं देते थे, हालांकि वह उनका सबसे करीबी रिश्तेदार था और उसमें अमानतों की हिफाजत का लिहाज किस हद तक था। लेकिन उन काफिरों को यह जरा भी उम्मीद नहीं थी कि उनका एक करीबी रिश्तेदार पैगंम्बर के इस महान पद पर नियुक्त किया जाएगा, निश्चित रूप से उन लोगों ने कभी आपके अंदर न कोई बुराई देखी और न ही उनके हाथों से किसी को कभी दुख पहुंचा। लेकिन फिर भी वह हर प्रकार से उनको नुकसान पहुंचाने की हमेशा ताक में लगे रहते थे और अत्यधिक नफरत करते थे और अपने प्रभाव और शक्ति का इस्तेमाल वह सिर्फ उनको तक्लीफ पहंचाने में किया करते थे।

अबू जेहल, जो अबू लहब का करीबी मददगार और साझीदार था, उसने मक्का में मुसलमानों के खिलाफ तीन सालों तक चलने वाले आर्थिक एवं सामाजिक बहिष्कार की कमान संभाली। उस बहिष्कार के कारण मुसलमानों के साथ उनका किस प्रकार का रिश्ता जिसमें शादी विवाह भी शामिल था, नहीं किया जा सकता था और साथ ही किसी प्रकार का कारोबार करना भी मना था। उसका नतीजा यह निकला कि बहुत से मुसलमान मारे गए जिसमें जवान और बूढ़े सभी शामिल थे। इससे उन्हें न केवल आर्थिक क्षति पहुंची पहली मानसिक एवं शारीरिक आघात भी पहुंचा। लेकिन अफसोस की बात यह थी कि इस दुख और मुसीबत का अबू लहब पर कोई असर नहीं पड़ा।

हज़रत पैगंबर की बीवी हजरत खदीजा जिन्हें उम्मुल मोमेनीन यानि मोमिनों अर्थात मुसलमानों की मां कहा जाता है, की मृत्यु उसी समय हुई थी। उसी साल, जिसे दुख का साल भी कहा जाता है, उनके चाचा हजरत अबू तालिब भी इंतकाल कर गए। वह उन्हें बहुत प्यार करते थे। साथ ही वह आम मुसलमानों की हिफाजत में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। यह उनका असर और जोर ही था कि कभी मक्का के काफिरों की यह हिम्मत न हुई कि वह पैग़म्बर मुहम्मद की जान लेने के बारे में सोचें। लेकिन भले ही अबू तालिब मुसलमानों और साथ ही पैगम्बर स.अ.व. की हिफात के प्रति दिन रात सचेत रहा करते थे मगर वह खुद मुसलमान नहीं हुए थे। हालांकि पैग़म्बर मुहम्मद की बड़ी ख्वाहिश थी कि वह मुसलमान हो जातें ज बवह मृत्यु शैया पर थे तो पैगंम्बर मुहम्मद ने उनसे विनती कि आप मुसलमान हो जाएं मगर अबू जेहल और अबू लहब जो उस समय उनके पास मौजूद थे, उन्हें ऐसा न करते दिया गया। यह बात पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व. के लिए बेहद तक्लीफ की थी कि उनके प्रिय चाचा ईमान लाए बगैर ही इस दुनिया से विदा हो गए।

मक्का विजय के दिन, हज़रत अबू बकर, जो पैगम्बर के बेहद गरीबी साथियों में से एक थे, अपने बूढ़े पिता को साथ लेकर पैगम्बर स.अ.व. के पास आए जिन्होंने अभी-अभी इस्लाम कबूल किया था। उनसे मुलाकात के दौरान अबू बकर जारो-क़तार रो रहे थे। उन्होंने बाद में स्पष्ट करते हुए फरमाया थाः

या अल्लाह के नबी, मेरी बड़ी दिली ख्वाहिश थी कि मेरे वालिद मुसलमान हो जाते और अब वह मुसलमान हो गए हैं। लेकिन मेरी इससे भी बड़ी ख्वाहिश यह थी कि आपके चाचा मुसलमान हो जाते क्योंकि आप की भी यही चाह थी। इसलिए मैं रो रहा हूं।

अबू तालिब जब तक जीवित रहे अपने भतीजे पैगम्बर मुहम्मद की हिफाजत पूरे दिलों जान से करते रहे मगर उनका भाई अबू लहब उनके विपरीत पैगम्बर मुहम्मद और आम मुसलमानों को हमेशा नुक्सान पहुंचाने की ताक में लगा रहता था।

जब पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. सारे कबीलों के पास इस पैगाम को लेकर गए कि अल्लाह एक है और अल्लाह के नजदीक उनके अच्छा और बुरे होने का बस एक ही पैमाना है कि वह किस प्रकार के अच्छे या बुरे काम करता है, लेकिन एक आदमी वहां ऐसा जरूर मौजूद होता था जिसकी लाल दाढ़ी थी और रंग भी बेहद गोरा और सुर्ख था, वह इस बात की कोशिशों में लगा रहता था कि आपकी शिक्षाओं का असर किसी पर न हो। हालांकि दूसरे कबीले और खानदान के लोग इस बात के लिए उनके पास आया करते थे कि उनसे अपनी मुहब्बत और हमदर्दी का इजहार कर सकें मगर वहीं अबू लहब की यह कोशिश होती कि वह पैगम्बर के प्रति ऐसी नफरत बैठी हुई थी कि वह उनके इर्द गिर्द जो ज्ञान का सूरज जगमगाता रहता था वह उसे नजर न आता था। कुरआन ने इसी बात को इस प्रकार बयान किया है कि अबू लहब के हाथ तबाह हों!

उसके अलावा भी कुरआन में और बहुत सी आयतें और सूरतें हैं जिसमें उनके दुशमनों का जिक्र किया गया है जो कोई भी अवसर न जाने देते थे जिसमें पैगम्बर को नुक्सान पहुंचाएं, उनकी शिक्षाओं का अनादर करें और जो लोग उन पर ईमान लाए थें उन्हें तक्लीफ पहुंचाएं। उन ही कट्टर शत्रुओं में वलीद इब्ने मुगीरा भी था वह खालिद के पिता थे जो बहुत थे जो बहुत जल्दी मुस्लिम सेना के पहले महान सेनापति की पदवी ग्रहण करने वाले थे। वलीद इब्ने मुगीरा हमेशा इस कोशिश में लगा रहता कि किस प्रकार वह पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. को बदनाम करें और साथ ही उनका कुरआन पढ़ने का आम लोगों पर जो जादुई प्रभाव है उसको कम करें। वह इस बात को ठीक-ठीक तय नहीं कर पा रहा था कि वह इसके लिए उन्हें किस नाम से नवाजें अर्थात उन्हें जादूगर कहें या शायर या नजूमी। अंत में उसने आपको जादूगर कहना ज्यादा मुनासिब समझा। कुरआन इस बात का उल्लेख इस प्रकार करता है।

अफसोस है उसके लिए! वह कितना दृढ़निश्चय है............(मुदस्सिर 74:19)

दूसरे काफिरों को दूसरी कई आयतों में धिक्कारा गया है और उन्हें अजाब का खौफ दिलाया गया है। यही कारण है कि अबू लहब के साथ भी ऐसा ही बर्ताव किया गया था। वास्तविकता यह थी कि अगर खालिद बिन मुगीरा को धिक्कारा जाता और अबू लहब को छोड़ दिया जाता तो कुछ लोग इसे भेदभाव पूर्ण बर्ताव की संज्ञा देते और कहते कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. का करीबी रिश्तेदार था। लेकिन कुरआन इस प्रकार की बातों के लिए कोई स्थान नहीं देता। अबू लहब को भी यहां उसी श्रेणी में शामिल किया गया है जैसे कि सारे दूसरे काफिरों को।

बदर की लड़ाई से पहले अबू लहब के नाम वाली सूरः मक्का में नाजिल हुई। कुरआन ने तभी यह ऐलान फरमा दिया था कि अबू लहब और उसकी बीवी एक काफिर के रूप में ही दुनिया से रूख्सत होंगे। इसलिए बदर की लड़ाई के ठीक एक हफ्ते बाद ही यह सच साबित हो गया। बदर की लड़ाई शुरू होने से पहले पैगम्बर मुहम्मद स. युद्धभूमि में घूम रहे थे और कह रहे थे कि “अबू जेहल यहां मारा जाएगा, उतबा यहां, शाएबा यहां और वलीद यहां।”9 इत्यादि। लड़ाई के बाद सहाबा-एकराम को उन काफिरों की लाशें वहीं पड़ी दिखाई दीं जहां पैगम्बर मुहम्मद ने उनके मारे जाने की भविष्यवाणी की थी। यह बात मुसलमानों के छोटे से समूह के ईमान में इजाफा करने के लिए काफी थी जबकि उनके शत्रुओं की संख्या काफी अधिक थी। उसी प्रकार अबू लहब को मौत न भी मोमिनों के ईमान में इजाफा ही किया और साथ ही उसकी मौत दूसरे अनेक लोगों के लिए चेतावनी और मिसाल बन गई।

कभी-कभी मुसीबत की हल्की सी झलक देख लेने के बाद या प्राकृतिक आपदा से गुजरने के बाद इंसान के ईमान में काफी इजाफा हो जाता है (अगर गैब से पर्दा उठा लिया जाता है और वह देख लेता है कि उसने क्या पाया।) तो वह मुसीबत और दुख की ही कामना करेगा, क्योंकि जो कुछ उसे मौत के बाद की दुनिया में हासिल होने वाला है वह उस दुनियावी मुसीबत और दुख से बहुत कम है। उसके साथ ही, कुछ लोग इतने गिरे हुए हैं और दिन ब दिन इसी अंजाम के साथ आगे बढ़ने के लिए मजबूर हैं तो वैसे लोगों पर किसी प्रकार की मुसीबत और दुख का फायदा नहीं होता। उनके लिए कुरआन चाहे सख्त भाषा का प्रयोग करे या न करे उससे उन पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। वह अपनी अंत को भुगतने के लिए अल्लाह की ओर से मजबूर कर दिए गए हैं क्योंकि उन लोगों की यही चाह थी। कुरआन में जिस प्रकार विशेषता के साथ अबू लहब और उसकी बीवी का वर्णन किया गया है। कुछ लोगों को लगता है कि वह कुरआन की महानता से मेल नहीं खाता। लेकिन वर्षों से इसी बात ने न जाने कितने असंख्य लोगों को सीधे रास्ते पर आने का मार्ग दिखाया है और उन्हें इस बात की सीख दी है कि वह अबू लहब और उसकी बीवी जैसे न हो जाएं जिन्हें अपने बुरे अंजाम को भुगतना पड़ा था। इसलिए इस सूरः का नाम उसके नाम के पीछे रखने में अल्लाह की ओर से बड़ी हिकमत की बात थी। मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिणक दृष्टि से भी यह मोमिनों के लिए लाभकारी सिद्ध हुई है।

उसके साथ ही इस सूरः ने काफिरों के मन में शंका एवं अविश्वास को जन्म देने का काम किया है। लेकिन अपने उस अविश्वास और शंकाओं पर काबू पा लेने के बाद उनके लिए इस्लाम की ओर झुकना आसान भी हुआ है। एक बार ईमान को कबूल कर लेने के बाद वह उनके दिलों दिमाग में बैठ गया था। बहुत से लोगों ने अपने मजबूती से जमे हुए कुफ्र को हटाने में सफलता पाई और पक्के मुसलमान बन गए हैं और दूसरों को भी उस सही रास्ते की ओर बुलाने का काम किया है।

सारांश के तौर पर, किसी व्यक्ति या जोड़े का इस प्रकार खास तौर पर वर्णन करके अल्लाह ने उनकी उस नफरत को लोगों पर जाहिर किया है, जो मन और दिल में इस्लाम के लिए पाई जाती थी और साथ ही इस बात से भी आगाह किया कि ऐसे लोगों का अंजाम क्या होता है, इसे हम कुरआन की शैली और उसकी सामग्री की असफलता नहीं कह सकते। बल्कि उसके विपरीत यह सूरः इस बात को प्रमाणित करती है कि कुरआन अपने अर्थ एवं शैली और प्रस्तुति की दृष्टि से कितने ऊँचे दर्जे की किताब है। यह किसी तालाब में एक छोटे से कंकड़ को फेंकन के समान है जो उसकी शांत लहर को आवेशित कर देती है और बेपनाह छोटी-छोटी लहरों में तब्दील कर देती है। कुरआन की शिक्षाओं की इसी लहर ने न जाने अब कितने करोड़ों अरबों लोगों की जिंदगी को बदलने का काम किया है। कुरआन को इतना उत्तम शैली में पेश किया गया है कि किसी विशेष व्यक्ति की मौत का वर्णन करके एक साथ एक संतुलन कायम करने की कोशिश की गई है कि कैसे कोई चीज एक साथ आकर्षक होने के साथ नफरत दिलाने वाली भी होती है। इसी आयत और सूरः ने करोड़ों लोगों के ईमान को बदलने का काम किया है। इसका अर्थ इतना व्यापक है कि यह केवल दो व्यक्तियों विशेष के बारे में कोई मामूली सी घटना मात्र नहीं हैं यह केवल दो व्यक्तियों विशेष के बारे में कोई मामूली सी घटना मात्र नहीं हैं यह कुरआन की महानता, उसकी उत्तम शैली और उसके उद्देश्य के बिल्कुल अनुकूल है।

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प्रकाशनाधिकार © 2024 फ़तेहउल्लाह गुलेन. सर्वाधिकार सुरक्षित
fgulen.com प्रसिद्ध तुर्की विद्वान और बौद्धिक फतहुल्लाह गुलेन पर आधिकारिक स्रोत है